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नृत्य : आत्मा की पुकार, संस्कृति की छाया - प्रतिभा गोस्वामी


Nilesh Yadav
26-04-2025 07:40 AM
खैरागढ़ : नृत्य—यह शब्द सुनते ही मन में गति, लय और सौंदर्य की छवि उभर आती है। परंतु यह केवल अंगों की चंचलता नहीं, बल्कि आत्मा की उस अनकही वाणी की प्रस्तुति है, जिसे शब्द कभी बयां नहीं कर सकते। नृत्य वह साधना है, जो तन के माध्यम से मन और आत्मा को साकार करती है। यह केवल प्रदर्शन नहीं, एक अंतर्यात्रा है, जो नर्तक को परम सत्ता से जोड़ती है।
भारत की सांस्कृतिक थाती में नृत्य एक ऐसा दीपक है, जो सदियों से जलता आ रहा है। भरतनाट्यम की गंभीर मुद्रा हो या कथक की घूमती पैंजनी, ओडिसी की कोमल भंगिमा हो या कुचिपुड़ी की प्रखर अभिव्यक्ति—हर नृत्य रूप हमारी परंपरा, दर्शन और भक्ति को अपने भीतर समेटे हुए है। वहीं, भांगड़ा की मस्ती, गरबा की चंचलता, घूमर की गरिमा और कालबेलिया की लचक, भारत की लोक-धड़कनों को जीवंत करती हैं। ये नृत्य केवल उत्सव का हिस्सा नहीं, बल्कि जनमानस की जीवंत अभिव्यक्ति हैं।
जब कोई नर्तक संगीत की धुन पर थिरकता है, तो वह केवल दृश्य नहीं बनता, वह ध्यान की उस अवस्था में पहुंचता है, जहां मन शांत होता है और चेतना विस्तृत। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि नृत्य मानसिक तनाव कम करता है, भावनाओं को सन्तुलित करता है और आत्मिक संतुलन की ओर ले जाता है। यही कारण है कि आज डांस थैरेपी का प्रयोग अवसाद, चिंता और आत्म-संवेदना के उपचार में किया जा रहा है।
वक्त बदला है, पर नृत्य की भूमिका नहीं। पहले जहां नृत्य मंदिरों और मंचों तक सीमित था, वहीं अब वह स्कूलों, सिनेमा और सोशल मीडिया के माध्यम से घर-घर तक पहुंच चुका है। यह बच्चों में आत्मविश्वास जगाता है, युवाओं में रचनात्मक ऊर्जा भरता है और बुज़ुर्गों में जीवन के रंग बिखेरता है। नृत्य, आज की पीढ़ी के लिए आत्म-अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन चुका है।
नृत्य महज़ एक कला नहीं, आत्मा की वह धड़कन है, जो शब्दों से परे जाती है। जब कोई सच्चे भाव से नृत्य करता है, तो वह अपनी अंतरात्मा को गति देता है। वह ब्रह्मांडीय लय से जुड़ता है, एकाकार होता है। तभी तो कहा गया है— "नृत्य वह मौन कविता है, जो आत्मा की धड़कनों से जन्म लेती है।"
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